Shakti Rupena Samsthita, Poem
![]() |
Shakti Rupena Samsthita, Poem |
Shakti Rupena Samsthita, Poem
" शक्ति रूपेण संस्थिता:,कविता
मा अंबे तेरी शान मे कुछ कहु...,
ये नादान सी गुस्ताखी होगी...,
पापी और दृष्टों की रूहँ ...,
तेरे दर्शन मात्रसे ही काँपती होगी...!!(1)
दृष्ट, पापी तूझसे कंपित होते...,
दूरसे ही मगर तूझको भजते...,
बुद्धि के ताले तू है खोलती...,
कृपा बरसाते तू न भेदभाव करती...!!(2)
अंबा है माँ तू जगदंबा है,
शेरोवाली दूर्गा तू शक्ति रूपा है,
काली, चामुंडा तू असूर संहारणी है,
घर-घर पूजी जाती कन्या देवी स्वरूपा है..!!(3)
कोख मे न मारो कलीयों को...
न दहेज की भेंट चढाओ...,
शरीर पर हक ऊसका है...,
जबरदस्ती हक न जताओ...!!(4)
जब चूडियों वाले ये हाथ...,
हिम्मत का गहेना पहेनेंगे...,
वध ऊन भेडियोंका निश्र्चित होगा...,
जब नारी शक्तिका एहसास होगा..!!(5)
माँ, पत्नी, बहेन या हो दोस्त
हरेक रूप मे नारी का सम्मान करो
समान अधिकार की हकदार है
सृष्टि की निर्मीती-जननी है ये...!!(6)
एसा बल दो हे माँ दुर्गा,काली,चामुंडा,
राक्षसी प्रवृत्तिओं के कलेजे काँप उठे,
सब घर मंगल सुख-संपदा फलनारी,
असूरी शक्तिओंकी तू सदा विनाशीनी हो..!! (7)
-जय माँ शक्ति, जय माँ अम्बे
Very nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteNice
ReplyDelete